Sunday, October 30, 2016

वायु प्रदूषण / भूमि प्रदूषण /प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।[1] वायु प्रदूषण के कारण मौतें[2] और श्वास रोग (respiratory disease).[3] वायु प्रदूषण की पहचान ज्यादातर प्रमुख स्थायी स्रोतों (major stationary source) से की जाती है, पर उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत (source of emissions) मोबाइल, ऑटोमोबाइल्स है।[4]कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सहायक है, को हाल ही में प्राप्त मान्यता के रूप में मौसम वैज्ञानिक प्रदूषक के रूप में जानते हैं, जबकि वे जानते हैं, कि कार्बन डाइऑक्साइड प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पेड़-पौधों को जीवन प्रदान करता है। यह वातावरण एक जटिल, गतिशील प्राकृतिक वायु तंत्र है जो पृथ्वी गृह पर जीवन के लिए आवश्यक है। वायु प्रदूषण के कारण समतापमंडल से हुए ओज़ोन रिक्तीकरण को बहुत पहले से मानव स्वास्थ्य के साथ साथ पृथ्वी के पारस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे के रूप में पहचाना गया है।

प्रदूषक
वायु में बहुत से तत्त्व होते हैं जो पौधों और पशुओं (मानव समेत) का स्वास्थ्य ख़राब कर सकते हैं या नजर ख़राब कर सकते हैं यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं तथा मानव गतिविधियों दोनों से उत्पन्न होते हैं। वायु में प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाने वाले तत्व या अधिक सांद्रता के साथ या सामान्य से अलग तत्वों को प्रदूषक कहा जाता है।  प्रदूषकों को प्राथमिक या द्वितीयक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्राथमिक प्रदूषक वे तत्व हैं जो सीधे एक प्रक्रिया से उत्सर्जित हुए हैं जैसे ज्वालामुखी विस्फोट से राख, मोटर गाड़ी से कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस, कारखानों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस। द्वितीयक प्रदूषक सीधे उत्सर्जित नहीं होते हैं। बल्कि जब प्राथमिक प्रदूषक आपस में क्रिया या प्रतिक्रिया करते हैं जब वे वायु में बनते हैं। द्वितीयक प्रदूषक का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जमीनी स्तर की ओज़ोन- बहुत से द्वितीयक प्रदूषकों में एक जो प्रकाश-रसायनिक धूम कोहरा बनाती है।
स्रोत
वायु प्रदूषण के स्रोत विभिन्न स्थान, गतिविधि या घटक सूचित करते हैं जो वातावरण में प्रदूषकों को मुक्त करने के लिए जिम्मेदार है। इन स्रोतों को दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है जो हैं:
विभिन्न प्रकार के ईंधन के दहन से सम्बद्ध मानवजनित स्रोत (मानव गतिविधि) (fuel)
बिजली संयंत्रों (power plant) की चिमनियाँ, सुविधाएँ निर्माण करना, नगर निगम के कचरे की भट्टी जैसे स्थिर स्रोत.
मोटर गाड़ी, हवाई जहाज (motor vehicles) जैसे गतिशील स्रोत.
समुद्री जहाजों जैसे मालवाहक जहाजों (container ships) या क्रूज़ जहाजों (cruise ships) से और सम्बन्धित बंदरगाह (port) से होने वाला वायु प्रदूषण.
जलाऊ लकड़ी (wood), आग लगाने के स्थान (fireplaces), चूल्हा (stove), भट्ठी (furnace) और भस्मक (incinerator).
सामान्य तेल शोधन (Oil refining) तथा औद्योगिक गतिविधि
कृषि और वानिकी प्रबंधन (controlled burn) में रसायन, धूल उड़ने और नियंत्रित दहन की पद्धतियां, (देखें धूल बाउल (Dust Bowl)).
पेंट, बालों के स्प्रे (paint), वार्निश (hair spray), एरोसोल स्प्रे (varnish) और अन्य विलायकों (aerosol spray) से निकलने वाला धुआँ.
लैंड फिल में जमा अपशिष्ट (landfill) जो मीथेन उत्पन्न करता है (methane).
सेना, जैसे परमाणु हथियार (nuclear weapon), विषाक्त गैस (toxic gas), कीटाणु युद्ध सामाग्री (germ warfare) और रॉकेटरी (rocket)I
प्राकृतिक स्रोत
प्राकृतिक (Dust) स्रोतों से धूल, आमतौर पर ज्यादा भूमि और कम या बिल्कुल भी नहीं वनस्पति वाली भूमि या बंजर भूमि से उड़ने वाली धूल
पशुओं (Methane) द्वारा भोजन (emitted) के पाचन (digestion) के कारण (animal) उत्सर्जित मीथेन, उदाहरण के लिए दुधारू पशु (cattle)
पृथ्वी की पपड़ी नष्ट होने से रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न रेडॉन गैस
जंगल (Smoke) की आग से (carbon monoxide) उत्पन्न धुआँ और कार्बन मोनोऑक्साइड (wildfires).
ज्वालामुखीय गतिविधि जिससे सल्फर, क्लोरीन और सूक्ष्म राख उत्पन्न होती (particulate) है।
भूमि प्रदूषण
भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई होती है। यह एक स्थिर इकाई होने के नाते इसकी वृद्धि में बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती हैं। बड़े पैमाने पर हुए औद्योगीकरण एंव नगरीकरण ने नगरों में बढ़ती जनसंख्या एवं निकलने वाले द्रव एंव ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित कर रहें हैं। ठोस कचरे के कारण आज भूमि में प्रदूषण अधिक फैल रहा है। ठोस कचरा प्राय: घरों, मवेशी-गृहों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। इसके ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं क्योंकि इस ठोस कचरे में राख, काँच, फल तथा सब्जियों के छिल्के, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, इंर्ट, रेत, धातुएँ मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि वस्तुएँ सम्मिलित हैं। हवा में छोड़े गये खतरनाक रसायन सल्फर, सीसा के यौगिक जब मृदा में पहुँचते हैं तो यह प्रदूषित हो जाती है। ��भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवाछिंत परिवर्तन, जिसका प्रभाव मनुष्य तथा अन्य जीवों पर पड़ें या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो भू-प्रदूषण कहलाता है। भूमि पर उपलब्ध चक्र भू-सतह का लगभग ५० प्रतिशत भाग ही उपयोग के लायक है और इसके शेष ५० प्रतिशत भाग में पहाड़, खाइयां, दलदल, मरूस्थल और पठार आदि हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि विश्व के ७९ प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से ही उत्पन्न होते हैं। इस संसाधन (भूमि) की महत्ता इसलिए और भी बढ़ जाती है कि ग्लोब के मात्र २ प्रतिशत भाग में ही कृषि योग्य भूमि मिलती है। अत: भूमि या मिट्टी एक अतिदुर्लभ (अति सीमित) संसाधन है।
मृदा प्रदूषण के मुख्य स्रोत

1-अपशिष्ट पदार्थ (Solid Waste)
घरेलू कचरा, लौह अपशिष्ट औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट आदि भूमि को प्रदूषित करते हैं। इन अपशिष्टों में जहरीले अकार्बनिक एवं कार्बनिक रसायनों के अवशेष पाए जाते हैं, जो हानिकारक होते हैं। इन अवशेषों में रेडियो-विकिरण तत्व जैसे स्ट्रॅान्शियम, कैडमियम, यूरेनियम, लैड आदि पाए जाते हैं, जो भूमि की जीवंतता एवं उर्वरता को प्रभावित करते हैं। फ्लाई एश (चिमनियों से निकलने वाला पदार्थ) औद्योगिक क्षेत्र के आस-पास प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। बहुत से अपशिष्ट, जिनका जैविक अपघटन (Biological Degradation) नहीं होता जैसे- पालीथिन बैग, प्लास्टिक आदि बहुत समय तक मृदा में अवरुद्ध रहकर एवं भौतिक संरचना को प्रभावित करते हैं।
कृषि रसायन -
व्यावसायिक कृषि में पेट्रो रसायन जैसे खरपतवारनाशी-कीटनाशी आदि का बेतहाशा प्रयोग किया जा रहा है साथ में अकार्बनिक रासायनिक उर्वरक (Chemical Fertilizers) का भी प्रयोग दिनों-दिन बढ़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों में फास्फेट,नाइट्रोजन एवं अन्य कार्बनिक रासायनिक भूमि के पर्यावरण एवं भूमिगत जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं। सर्वाधिक खतरनाक प्रदूषक जैवनाशी रसायन है जिनके कारण जलवायु एवं अन्य मृदा के सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं फलस्वरूप मिट्टी की गुणवत्ता में कमी हो रही है। विषैले रसायन आहार श्रृंखला में प्रविष्ट हो जाते हैं जिससे उनकी पहुंच शीर्ष उपभोक्ता तक हो जाती है जैवनाशी रसायनों को रेंगती मृत्यु (Creeping Deaths) भी कहा जाता है। गत 30 वर्षों में जैव रसायनों के प्रयोग में 11 गुने से अधिक की वृद्धि हुई है। अकेले भारतवर्ष में प्रतिवर्ष 1,00,000 टन जैव रसायनों का प्रयोग हो रहा है।
मृदा प्रदूषण के भौतिक स्रोत -
मृदा अपरदन (Soil Corrosion) के कारण में मृदा की गुणवत्ता में भारी कमी होती है जिसके प्रमुख कारण निम्नवत हैं।
1- वर्षा की मात्रा एवं तीव्रता 2- तापमान तथा हवा 3- जैविक कारक 4- मृदा खनन
प्रभाव -
मृदा प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्नवत हैं।

1- मृदा की गुणवत्ता में हृास एवं उर्वरकता में कमी होती है जिसके कारण कृषि उत्पादन में कमी तथा खाद्यान्न संकट में बढ़ोतरी होती है ।
2- मृदा अपरदन से मृदा बंजर भूमि में बदल जाती है।
3- रासायनिक उर्वरकों एवं जैवनाशी रसायनों के कारण संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होता है एवं विषाक्तता से मृत्यु तक हो जाती है।
प्रदूषण
प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयनका यह एक प्रमुख कारण है।
पृथ्वी का वातावरण स्तरीय है। पृथ्वी के नजदीक लगभग 50 km ऊँचाई पर स्ट्रेटोस्फीयर है जिसमें ओजोन स्तर होता है। यह स्तर सूर्यप्रकाश की पारबैंगनी (UV) किरणों को शोषित कर उसे पृथ्वी तक पहुचने से रोकता है। आज ओजोन स्तर का तेजी से विघटन हो रहा है, वातावरण में स्थित क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण ओजोन स्तर का विघटन हो रहा है।
यह सर्वप्रथम 1980 के वर्ष में नोट की किया गया की ओजोन स्तर का विघटन संपूर्ण पृथ्वी के चरों ओर हो रहा है। दक्षिण ध्रुव विस्तारों में ओजोन स्तर का विघटन 40-50% हुआ है इस विशाल घटना को ओजोन छिद्र (ओजोन होल) कहतें है मानव आवास वाले विस्तारों में भी ओजोन छिद्रों के फैलने की संभावना हो सकती है। परंतु यह इस बात पर आधार रखता है कि गैसों की जलवायुकीय परिस्थिति और वातावरण में तैरती अशुध्दियों के अस्तित्व पर है।
ओजोन स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी है तथा मानव को अनेक प्रकार के चर्म रोगों का सामना करना पड़ रहा है। ये सब रेफिजरेटर और एयरकंडिशनर में से उपयोग में होने वाले फ़्रियोन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण उत्पन्न हो रही समस्या है। आज हमारा वातावरण दूषित हो गया है वाहनों तथा फैक्ट्रीयों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषण और मीलों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा जाता है। जिससे जल प्रदूषण होता है लोंगों द्वारा कचरा फेंके जाने से थल (जमीन) प्रदूषण होता है।
प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषण के कुछ मुख्य प्रकार निम्नवत हैं:
वायु प्रदूषण:-वातावरण में रसायन तथा अन्य सुक्ष्म कणों के मिश्रण को वायु प्रदुषण कहते हैं। सामान्यतः वायु प्रदूषण कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) और उद्योग और मोटर वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन आक्साइड जैसे प्रदूषको से होता है। धुआँसा वायु प्रदुषण का परिणाम है। धूल और मिट्टी के सूक्ष्म कण सांस के साथ फेफड़ों में पहुंचकर कई बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं।
जल प्रदूषण:- जल में अनुपचारित घरेलू सीवेज के निर्वहन और क्लोरीन जैसे रासायनिक प्रदूषकों के मिलने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण पौधों और पानी में रहने वाले जीवों के लिए हानिकारक होता है।
भूमि प्रदूषण:- ठोस कचरे के फैलने और रासायनिक पदार्थों के रिसाव के कारण भूमि में प्रदूषण फैलता है।
प्रकाश प्रदूषण:- यह अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश के कारण होता है।
ध्वनि प्रदूषण:- अत्यधिक शोर जिससे हमारी दिनचर्या बाधित हो और सुनने में अप्रिय लगे, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण:- परमाणु उर्जा उत्पादन और परमाणु हथियारों के अनुसंधान, निर्माण और तैनाती के दौरान उत्पन्न होता है।
जागरूकता संबंधी भूमिका[संपादित करें]
इसका अर्थ है लोगों को (कर्मचारियों तथा जनता दोनों को) पर्यावरण प्रदूषण के कारण तथा परिणामों के संबंध में जागरूक बनाएँ, ताकि वे पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने की बजाय ऐच्छिक रूप से पर्यावरण की रक्षा कर सकें। उदाहरण के लिए व्यवसाय जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करे। आजकल कुछ व्यावसायिक इकाईयां शहरों में पार्कों के विकास तथा रखरखाव की जिम्मेदारियाँ उठा रही हैं, जिससे पता चलता है कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं।