सिरपुर तालाब को संवारने के लिए कागजों पर भले ही
कितनी कोशिश कर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हों, लेकिन असल हालात भयावह हैं। छोटा सिरपुर तालाब में
रोजाना हजारों लीटर जहर मिलाया जा रहा है। तालाब के पीछे बसी करीब दर्जनभर
कॉलोनियों के लिए सीवरेज लाइन डाली जा चुकी है, बावजूद इसके कई कॉलोनियों का गंदा पानी तालाब में
मिलाया जा रहा है। न मछलियां सुरक्षित हैं, न पक्षी। सड़ांध से पर्यटक अलग कतरा रहे हैं।
सिरपुर तालाब को पक्षी अभयारण्य बनाने की कल्पना मात्र से निगम अधिकारी अपनी
वाहवाही कर रहे हैं, लेकिन असल हालत बेहद शर्मसार कर देने वाले हैं। निगम द्वारा यहां की
विकास योजनाओं पर पैसा खर्च करते-करते करीब पांच साल हो चुके हैं, लेकिन तालाब को आज तक गंदे
पानी से मुक्ति नहीं दिलवाई जा सकी। बल्कि तालाब में रोजाना मिलाए जाने वाले जहर
की मात्रा बढ़ती जा रही है। तालाब के पास बसी कॉलोनियों का गंदा पानी आज तक तालाब
में मिलाया जा रहा है और अधिकारी सबकुछ जानकर भी खामोश रहकर तमाशा देख रहे हैं।
फिर सीवरेज लाइन डालने का मतलब ही क्या निकला?
निगम अधिकारियों के काम करने की तरीके पर सवाल
उठाया जाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि सालों बाद इस क्षेत्र में ड्रैनेज लाइन डालने का कोई फायदा
नहीं मिला। जोनल अधिकारियों के मुताबिक यहां ड्रैनेज लाइन डाली गई है और करीब आठ
कॉलोनियों का गंदा पानी उसी सीवरेज लाइन के जरिए निकाला जा रहा है। मगर हकीकत यह
है कि आज भी करीब दर्जनभर कॉलोनियों का गंदा पानी सीवरेज लाइन के बजाय तालाब में
ही डाला जा रहा है। अधिकारी इस मामले में सफाई दे रहे हैं जिस पाइप लाइन के जरिए
तालाब में गंदा पानी आ रहा है, वो सीवरेज लाइन नहीं बल्कि स्टॉर्म वाटर लाइन यानी बारिश के पानी की
लाइन है। मगर इसमें कई लोगों ने ड्रैनेज को जोड़ दिया है, इसलिए स्टॉर्म वाटर लाइन के
जरिए गंदगी तालाब में मिल रही है। हालांकि अधिकारी यह भी दावा कर रहे हैं कि इस
तरह की समस्या सामने आने के बाद स्टॉर्म लाइन से ड्रैनेज कनेक्शन हटा दिए गए हैं
और अब उन्हें सीवरेज लाइन से जोड़ा जा रहा है।
मानो हम नर्क में रह रहे हैं...
छोटा सिरपुर तालाब के ठीक पास रहने वाले लोग
दिनोदिन बढ़ती गंदगी की समस्या के कारण बेहद परेशान हैं। रहवासियों का कहना है कि
ग्वाला कॉलोनी, प्रजापति नगर, द्वारकापुरी, ऋषि पैलेस कॉलोनी, आकाश नगर सहित कई ऐसी
कॉलोनियां हैं, जहां ड्रैनेज लाइन डलने के
बावजूद आज तक तालाब में गंदा पानी मिलाया जा रहा है। इसके कारण गंदगी, आवारा पशु और बदबू की
समस्या भी बढ़ती जा रही है। सुबह-शाम के समय जब पानी ज्यादा मात्रा में बहाया जाता
है,
तो बदबू इतनी तेज हो जाती
है कि यहां रहना मुश्किल हो जाता है। लोगों का कहना है कि हम तो यहां मानो नर्क
में रह रहे हैं।
फिर कैसे आएं पर्यटक?
जल संरक्षण के आसान उपाय
राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए अब हमें `जल
संरक्षण´ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण
अभियान चलाने की आवश्यकता है। `जल संरक्षण´ के कुछ परंपरागत
उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं। जिन्हें हम, जाने क्यों,
विकास
और फैशन की अंधी दौड़ में भूल बैठे हैं।
1.सबको जागरूक नागरिक की तरह `जल संरक्षण´ का अभियान चलाते
हुए बच्चों और महिलाओं में जागृति लानी होगी। स्नान करते समय `बाल्टी´
में
जल लेकर `शावर´ या `टब´ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरूष वर्ग ढाढ़ी
बनाते समय यदि टोंटी बन्द रखे तो बहुत जल बच सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब
में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।
2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख
देने से हर बार `एक लीटर जल´ बचाने का कारगर उपाय उत्तराखण्ड जल संस्थान ने
बताया है। इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया
जा सकता है।
3. पहले गाँवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह
पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का
जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे
मछलियाँ और मेंढक आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गाँव के पीने,
नहाने
और पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को
पाट कर घर बना लिए और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठा है। जरूरी है कि गाँवों,
कस्बों
और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।
4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढ्ढे बना कर एकत्र
किया जाए और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए, तो साफ पेयजल की
बचत अवश्य की जा सकती है।
5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ` वर्षा जल´ का भंडार करने
के लिए एक या दो टंकी बनाई जाएँ और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढ़क दिया
जाए तो हर नगर में `जल संरक्षण´ किया जा सकेगा।
6. घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों
अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोंटियाँ खुली या टूटी रहती हैं, तो
अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है। इस बरबादी को रोकने के लिए
नगर पालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दण्डात्मक अपराध बनाकर, जागरूकता
भी बढ़ानी होगी।
7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा
है, गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में `पेयजल´
के
साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए `खारेजल´ का प्रयोग करके
शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाए।
8. गंगा और यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी
है। नगरों और महानगरों का गन्दा पानी ऐसी नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है,
जिससे
मछलियाँ आदि मर जाती हैं और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है। बड़ी नदियों
के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सके, इसके लिए
शासन-प्रशासन को लगातार सक्रिय रहना होगा।
9. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह कि
वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता हैं। बढ़ती
जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी
लगातार कम होती जा रही है, इसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है।
10. पानी का `दुरूपयोग´ हर स्तर पर कानून के द्वारा, प्रचार माध्यमों से कारगर प्रचार करके और
विद्यालयों में `पर्यावरण´ की ही तरह `जल संरक्षण´ विषय को
अनिवार्य रूप से पढ़ा कर रोका जाना बेहद जरूरी है। अब समय आ गया है कि केन्द्रीय
और राज्यों की सरकारें `जल संरक्षण´ को अनिवार्य विषय बना कर प्राथमिक से लेकर उच्च
स्तर तक नई पीढ़ी को पढ़वाने का कानून बनाएँ।
निश्चय ही `जल संरक्षण´ आज के
विश्व-समाज की सर्वोपरि चिन्ता होनी चाहिए, चूंकि उदार
प्रकृति हमें निरन्तर वायु, जल, प्रकाश आदि का उपहार देकर उपकृत करती रही है,
लेकिन
स्वार्थी आदमी सब कुछ भूल कर प्रकृति के नैसगिक सन्तुलन को ही बिगाड़ने पर तुला
हुआ है।