Sunday, October 30, 2016

राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य

राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य
राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य राजस्थान के कोटा से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभ्यारण्य 280 वर्ग किलोमीटर के जल क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण पूर्वी राजस्थान में चम्बल नदी पर राणा प्रताप सागर से चम्बल नदी के बहाव तक इसका फैलाव है।
यह वन्य जीव अभयारण्य घड़ियालों और पतले मुँह वाले मगरमच्छों के लिए बहुत लोकप्रिय है।
पानी में मगरमच्छ तथा घड़ियाल प्रकृति की गोद में अपना जीवन-यापन एवं वंश समृद्धि करते हैं।
इस अभयारण्य को 'दर्राह वन्य जीव अभयारण्य' भी कहा जाता है।
अभयारण्य में चीते, वाइल्डबोर, तेंदुए और हिरन आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
यहाँ पर बहुत कम जगह दिखाई देने वाला दुर्लभ 'कराकल' भी देखा जा सकता है।
इस अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य घड़ियालों की प्रजाति को संरक्षित करना तथा उनकी संख्या में वृद्धि करना है।

वायु प्रदूषण / भूमि प्रदूषण /प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।[1] वायु प्रदूषण के कारण मौतें[2] और श्वास रोग (respiratory disease).[3] वायु प्रदूषण की पहचान ज्यादातर प्रमुख स्थायी स्रोतों (major stationary source) से की जाती है, पर उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत (source of emissions) मोबाइल, ऑटोमोबाइल्स है।[4]कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सहायक है, को हाल ही में प्राप्त मान्यता के रूप में मौसम वैज्ञानिक प्रदूषक के रूप में जानते हैं, जबकि वे जानते हैं, कि कार्बन डाइऑक्साइड प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पेड़-पौधों को जीवन प्रदान करता है। यह वातावरण एक जटिल, गतिशील प्राकृतिक वायु तंत्र है जो पृथ्वी गृह पर जीवन के लिए आवश्यक है। वायु प्रदूषण के कारण समतापमंडल से हुए ओज़ोन रिक्तीकरण को बहुत पहले से मानव स्वास्थ्य के साथ साथ पृथ्वी के पारस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे के रूप में पहचाना गया है।

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व उज्जैन का महान धार्मिक पर्व है। बारह वर्षों के अन्तराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियाँ चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होती है और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अन्तिम स्नान तक विभिन्न तिथियों में संपन्न होती है। उज्जैन के इस महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गये हैं।
उज्जैन में आयोजित होने वाले इस भव्य समारोह के लिए विभिन्न पारम्परिक कारक ढूँढे जा सकते हैं। पुराणों के अनुसार देवों और दानवों के सहयोग से सम्पन्न समुद्रमन्थन से अन्य वस्तुओं के अलावा अमृत से भरा हुआ एक कुम्भ (घड़ा) भी निकला था।
देवता दानवों के साथ अमृत नहीं बाँटना चाहते थे। देवराज इन्द्र के संकेत पर उनके पुत्र जयन्त ने अमृत कुम्भ लेकर भागने की चेष्ठा की, तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से दानवों ने उनका पीछा किया। अमृत-कुम्भ के लिए स्वर्ग में बारह दिन तक संघर्ष चलता रहा और परिणामस्वरूप हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में अमृत की कुछ बूँदें गिर गयीं। यहाँ की पवित्र नदियों को अमृत की बूँदें प्राप्त हुईं। अमृत कुम्भ के लिए स्वर्ग में बारह दिनों तक संघर्ष हुआ, जो धरती पर बारह वर्ष के बराबर है। अन्य तीन स्थानों पर यह पर्व कुम्भ के नाम से अधिक लोकप्रिय है। सभी चार स्थानों के लिए बारह वर्ष का यह चक्र समान है।

स्वच्छ भारत अभियान / स्वच्छता आंदोलन

स्वच्छता आंदोलन हमारे देश  में श्री मोडी ने स्वच्छ  भारत अभियान के रूप में शुरू लागू किया।  यह  एक बढिया विचार है। इस  से हिंदुस्थन  और  हिन्दुस्थानियों  का  भलाई  होगा।  यह  आंदोलन आगे बढ़कर  पूरे देश भर  की इस समस्या का समाप्त कर देगा  ।  स्वच्छता आंदोलन जनता का आन्दोलन  और  हम सब का  आन्दोलन  है ।
        2 अक्टोबर 2014 को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने  स्वच्छ भारत  अभियान का  शुभ आरंभ  किया।  महात्मा गाँधी का  यह एक सपना था कि  सब  भारत वासी स्वच्छता के बारे में सीखें और उसका अमल करें।
    अगर सब नागरिक अपने  आसपास  के जगह साफ रखें तो बीमारियाँ फैलना बंद हो जायेंगी   हमारा घर, मुल्क, और देश सुन्दर दीखेंगे।  सफाई के मामले में हम हिंदुस्तानी विदेशी वासियों से बहुत पीछे हैं। भारत को स्वच्छ और साफ रखने से हमारे पैसे, जो अस्पतल में और दवाइयों के लिये खर्च करते  हैंवे  बच जायेंगे ।  सफाई और स्वच्छता  भारत के सभी नागरिकों  की एक सामाजिक जिम्मेदारी बनती है।
   भारत की  आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।  सिर्फ दो घंटे हर हफ़्ते  लगाना है हमें  इस काम में।   स्वच्छ भारत में  लोग ना गंदगी करेंगे और ना करने देंगे 
    विद्यालयों में छोटे बच्चे सफाई और स्वास्थ्य के बारे में सीखते हैं। गंदगी, कूड़ा, और कचरे से होनेवाले  नुकसान भी समझते हैं।  विद्यार्थी  बडे  हो कर जब  नागरिक  बन  जायेंगे, तब भारत को स्वच्छ और साफ रखेंगे। विद्यार्थियों को सवास्थ्य के बारे मे जानकारी होने से वे अच्छे संस्कार भी सीखेंगे।  और अपने परिवार के स्वास्थ्य के  बारे में भी जागरूक रहेंगे।
   विद्यालयों में  विद्यार्थियों को  सब  कुछ  साफ रखने  की  आदत  पड  जाती है, तब वे बिना बताये  ही अपनी जगाह के साथ साथ असपास के जगहों को भी साफ और सुन्दर रखने का जिम्मेदारी ले लेंगे।  जहाँ पर सरकार या नगर पालिका अच्छा  प्रबन्धन नहीं कर पाती है, वहां  कुछ स्वैच्छिक संस्थानों  को सफाई  के  कम  सौंपना  चाहिये।  इन संस्थानों को कुछ नाममात्र भुगतान भी दिया जा सकता है।
     हमें  गावों में और ज्यादा  शौचालय बनाने होंगे।  इस में नगर मुनिसिपलिटी और पंचायत की विशेष  भूमिका है। भारत की स्वच्छता की यह  कोशिश  मानव  शृंखला  बनकर  और  बढ़ेगा।  अखबारटीवी और रेडियो पर प्रसारणों और चर्चाओं लोगों की जानकारी बढ़ेगी ।  कुछ  सालों के बाद हिंदुस्तान पश्चिमी देशों  जैसे एकदम बढिया और सुन्दर हो जाएगा।

Bhagat Singh or Shaheed Bhagat Singh

Bhagat Singh
Bhagat Singh or Shaheed Bhagat Singh was an Indian socialist considered to be an influential revolutionary of the Indian independence movement. Born into a Punjabi Sikh family which had earlier been involved in revolutionary activities against the British Raj, he studied European revolutionary movements as a teenager and was attracted to anarchist and Marxist ideologies. He worked with several revolutionary organisations and became prominent in the Hindustan Republican Association (HRA), which changed its name to the Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) in 1928.
Seeking revenge for the death of Lala Lajpat Rai, Singh murdered John Saunders, a British police officer. He eluded efforts by the police to capture him. Soon after, together with Batukeshwar Dutt, he and an accomplice threw two bombs and leaflets inside the Central Legislative Assembly. The two men were arrested, as they had planned. Held in jail on a charge of murder, he gained widespread national support when he undertook a 116-day fast demanding equal rights for European prisoners, and those Indians imprisoned for what he believed were political reasons. During this period, sufficient evidence was brought against him for a conviction in the Saunders case after trial by Special Tribunal, and an appeal to the Privy Council in England. He was convicted and subsequently hanged for his participation in the murder at the age of 23. His legacy prompted youth in India to continue fighting for independence and he remains an influence on some young people in modern India, as well as the inspiration for several films. He is commemorated with a range of memorials including a large bronze statue in the Parliament of India.

कम्बन

कम्बन

जीवनी
कंबन का समय निश्चित नहीं है। जनश्रुति के अनुसार कंबन का जन्म ईसा की नवीं शताब्दी में हुआ था। किंतु अन्नमल विश्वविद्यालय के तमिल विभागाध्यक्ष श्री पी.टी. मीनाक्षिसुंदरम् इनका समय 12वीं श्ताब्दी मानते हैं। कंबन के जीवनवृत्त के विषय में भी ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। उन्हें लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैंलेकिन इन्हें प्रामाणिक नहीं माना जाता। कवि ने अपने विषय में कहीं कुछ नहीं लिखा हैपरंतु तिरुवेण्णेयनल्लूर गाँव के शडयप्पवल्लर नामक एक लोकप्रिय एवं दानी व्यक्ति का उल्लेख कंब रामायण से एकाधिक स्थलों पर हुआ है। विद्वानों का अनुमान है कि कंबन इस उदार व्यक्ति के आश्रय में कुछ दिन रहे थे। इसीलिए उन्होंने अपने काव्य में शडयप्पवल्लर का आदर एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण किया है। पता यह भी चलता है कि कंबन चोल और चेर राजाओं के दरबार में भी गए थेपर उन्होंने उक्त राजाओं में से किसी को भी अपनी महान कृति समर्पित नहीं की है।

कंबन वैष्णव थे। उनके समय तक बारहों प्रमुख आलवार हो चुके थे और भक्ति तथा प्रपति का शास्त्रीय विवेचन करनेवाले यामुनरामानुज आदि आचार्यों की परंपरा भी चल पड़ी थी। कंबन के प्रमुख आलवार "नम्मालवार" (पाँचवे आलवार जो शठकोप या परांकुश मुनि के नाम से भी प्रसिद्ध हैं) की प्रशस्ति की है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि कंबन की रामायण रंगनाथ जी को तभी स्वीकृत हुईजब उन्होंने नम्मालवार की स्तुति उक्त ग्रंथ के आरंभ में की। इतना ही नहींकंब रामायण में यत्र-तत्र उक्त आलवार की श्रीसूक्तियों की छाया भी दिखाई पड़ती हैतो भी कंबन ने अपने महाकाव्य को केवल सांप्रदायिक नहीं बनाया हैउन्होंने शिव विष्णु के रूप (केवल सृष्टिकर्ता) में भी परमात्मा का स्तवन किया है और रामचंद्र को उस परमात्मा का ही अवतार माना है। ग्रंथारंभ में एवं प्रत्येक कांड के आदि में प्रस्तुत मंगलाचरण के पद्यों से उक्त तथ्य प्रकट होता है। प्रो॰टी.पी. मीनाक्षिसुंदरम् भी कंब रामायण को केवल वैष्णव संप्रदाय का ग्रंथ नहीं मानते। इसीलिए शैवों तथा वैष्णवों में कंब रामायण का समान आदर हुआ और दोनों संप्रदायों के पारस्परिक वैमनस्य के दूर होने में इससे पर्याप्त सहायता मिली।

वाल्मीकि

वाल्मीकि
वाल्मीकि प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रुप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत मे रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।
वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य 'रामायण' के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं।
वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। महर्षि बनने के पहले वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। वे परिवार के पालन-पोषण हेतु दस्युकर्म करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह कार्य किसलिए करते हो, रत्नाकर ने जवाब दिया परिवार को पालने के लिये। नारद ने प्रश्न किया कि क्या इस कार्य के फलस्वरुप जो पाप तुम्हें होगा उसका दण्ड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे। रत्नाकर ने जवाब दिया पता नहीं, नारदमुनि ने कहा कि जाओ उनसे पूछ आओ। तब रत्नाकर ने नारद ऋषि को पेड़ से बाँध दिया तथा घर जाकर पत्नी तथा अन्य परिवार वालों से पूछा कि क्या दस्युकर्म के फलस्वरुप होने वाले पाप के दण्ड में तुम मेरा साथ दोगे तो सबने मना कर दिया। तब रत्नाकर नारदमुनि के पास लौटे तथा उन्हें यह बात बतायी। इस पर नारदमुनि ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे घरवाले इसके पाप में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिये यह पाप करते हो। यह सुनकर रत्नाकर को दस्युकर्म से उन्हें विरक्ति हो गई तथा उन्होंने नारदमुनि से उद्धार का उपाय पूछा। नारदमुनि ने उन्हें राम-राम जपने का निर्देश दिया।
रत्नाकर वन में एकान्त स्थान पर बैठकर राम-राम जपने लगे लेकिन अज्ञानतावश राम-राम की जगह मरा-मरा जपने लगे। कई वर्षों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली जिस कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें ज्ञान प्रदान किया तथा रामायण की रचना करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी की कृपा से इन्हें समय से पूर्व ही रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान हो गया तथा उन्होंने रामायण की रचना की। कालान्तर में वे महान ऋषि बने। हिंदुओं के प्रसिद्ध महाकाव्य वाल्मीकि रामायण, जिसे कि आदि रामायण भी कहा जाता है और जिसमें भगवान श्रीरामचन्द्र के निर्मल एवं कल्याणकारी चरित्र का वर्णन है, के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ प्रचलित है जिसके अनुसार उन्हें निम्नवर्ग का बताया जाता है जबकि वास्तविकता इसके विरुद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदुओं के द्वारा हिंदू संस्कृति को भुला दिये जाने के कारण ही इस प्रकार की भ्रांतियाँ फैली हैं। वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि ने श्लोक संख्या ७/९३/१६, ७/९६/१८ और ७/१११/११ में लिखा है कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम 'अग्निशर्मा' एवं 'रत्नाकर' थे।


सिरपुर तालाब

सिरपुर तालाब को संवारने के लिए कागजों पर भले ही कितनी कोशिश कर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हों, लेकिन असल हालात भयावह हैं। छोटा सिरपुर तालाब में रोजाना हजारों लीटर जहर मिलाया जा रहा है। तालाब के पीछे बसी करीब दर्जनभर कॉलोनियों के लिए सीवरेज लाइन डाली जा चुकी है, बावजूद इसके कई कॉलोनियों का गंदा पानी तालाब में मिलाया जा रहा है। न मछलियां सुरक्षित हैं, न पक्षी। सड़ांध से पर्यटक अलग कतरा रहे हैं। सिरपुर तालाब को पक्षी अभयारण्य बनाने की कल्पना मात्र से निगम अधिकारी अपनी वाहवाही कर रहे हैं, लेकिन असल हालत बेहद शर्मसार कर देने वाले हैं। निगम द्वारा यहां की विकास योजनाओं पर पैसा खर्च करते-करते करीब पांच साल हो चुके हैं, लेकिन तालाब को आज तक गंदे पानी से मुक्ति नहीं दिलवाई जा सकी। बल्कि तालाब में रोजाना मिलाए जाने वाले जहर की मात्रा बढ़ती जा रही है। तालाब के पास बसी कॉलोनियों का गंदा पानी आज तक तालाब में मिलाया जा रहा है और अधिकारी सबकुछ जानकर भी खामोश रहकर तमाशा देख रहे हैं।

Saturday, October 29, 2016

DETAIL OF INDIA'S VISITING PLACES IN HINDI

पुराना किला, दिल्ली

पुराना किला नई दिल्ली में यमुना नदी के किनारे स्थित प्राचीन दीना-पनाह नगर का आंतरिक किला है। इस किले का निर्माण शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल में १५३८ से १५४५ के बीच करवाया था। किले के तीन बड़े द्वार हैं तथा इसकी विशाल दीवारें हैं। इसके अंदर एक मस्जिद है जिसमें दो तलीय अष्टभुजी स्तंभ है। हिन्दू साहित्य के अनुसार यह किला इंद्रप्रस्थ के स्थल‍ पर है जो पांडवों की विशाल राजधानी होती थी। जबकि इसका निर्माण अफ़गानी शासक शेर शाह सूरी ने १५३८ से १५४५ के बीच कराया गया, जिसने मुगल बादशाह हुमायूँ से दिल्ली का सिंहासन छीन लिया था। ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह हुमायूँ की इस किले के एक से नीचे गिरने के कारण दुर्घटनावश मृत्यु हो गई।
इतिहास
कहा जाता है कि दिल्ली को सर्वप्रथम पाण्डव|पांडवों ने अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में बसाया था वह भी ईसापूर्व से १४०० वर्ष पहले, परन्तु इसका कोई पक्का प्रमाण नहीं हैं। आज दिख रहे पुराने किले के दक्षिण पूर्वी भाग में सन १९५५ में परीक्षण के लिए कुछ खंदक खोदे गए थे और जो मिट्टी के पात्रों के टुकड़े आदि पाए गए वे महाभारत की कथा से जुड़े अन्य स्थलों से प्राप्त पुरा वस्तुओं से मेल खाते थे जिससे इस पुराने किले के भूभाग को इन्द्रप्रस्थ रहे होने की मान्यता को कुछ बल मिला है। भले ही महाभारत को एक पुराण के रूप में देखते हैं लेकिन बौद्ध साहित्य अंगुत्तर निकाय में वार्णित महाजनपदों यथा अंग, अस्मक, अवन्ती, गंधार, मगध, छेदी आदि में से बहुतों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जो इस बात का संकेत है कि यह ग्रन्थ मात्र पौराणिक ही नहीं तथापि कुछ ऐतिहासिकता को भी संजोये हुए है।

TOP 5 SUCCESSFUL WOMEN

Kalpana Chawla:
The tragic loss of the space shuttle Columbia killed seven astronauts. One of those, Kalpana Chawla, was the first Indian-born woman in space. Born in Karnal, India, on July 1, 1961, Chawla was the youngest of four children. The name Kalpana means "idea" or "imagination." Her full name is pronounced CULL-puh-na CHAV-la, though she often went by the nickname K.C.
Chawla obtained a degree in aeronautical engineering from Punjab Engineering College before immigrating to the United States and becoming a naturalized citizen in the 1980s. She earned a doctorate in aerospace engineering from the University of Colorado in 1988, having previously obtained her masters degree from the University of Texas. She began working at NASA's Ames Research Center the same year, working on power-lift computational fluid dynamics.
In 1994, Chawla was selected as an astronaut candidate. After a year of training, she became a crew representative for the Astronaut Office EVA/Robotics and Computer Branches, where she worked with Robotic Situational Awareness Displays and tested software for the space shuttles. Chawla's first opportunity to fly in space came in November 1997, aboard the space shuttle Columbia on flight STS-87. The shuttle made 252 orbits of the Earth in just over two weeks. The shuttle carried a number of experiments and observing tools on its trip, including a Spartan satellite, which Chawla deployed from the shuttle. The satellite, which studied the outer layer of the sun, malfunctioned due to software errors, and two other astronauts from the shuttle had to perform a spacewalk to recapture it.

Wednesday, October 12, 2016

इंदौर

इंदौर, मध्‍यप्रदेश के मालवा के पठार पर स्थित है जहां पर्यटक खुशी से सैर के लिए जाते है। यह मानव - निर्मित आकर्षण भूमि है, इंदौर को मध्‍यप्रदेश का दिल कहा जाता है। इंदौर पर्यटन आपको एक ऐसे खूबसूरत शहर की सैर पर ले जाता है जहां चमचमाती नदियां, शांत झीलें और बुलंद पठार मनोरम दृश्‍य प्रस्‍तुत करते है। यहां की अद्भूत प्राकृतिक सौंदर्य वाली भूमि, इंदौर की सुंदर वास्‍तुकला और महिमा को बखूबी दर्शाती है। इस शहर में दो नदियों, खान और सरस्‍वती के संगम की बात कही जाती है। इंदौर में प्राकृतिक वंडर्स के बीच एक सुंदर संतुलन है जो अतीत और वर्तमान का खूबसूरत मिश्रण है। पर्यटन की दृष्टि से इंदौर में संरचनात्‍मक, सांस्‍कृतिक और सामाजिक जीवन में जीवंतता देखने का मिलती है।