भारत के राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्रपति संघ का कार्यपालक अध्यक्ष हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 52 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित है। वह सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश का प्रथम नागरिक है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
राष्ट्रपति का चुनाव
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है।
राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा वोट डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होती है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले वोट अन्य उम्मीदवारों को तबतक हस्तांतरित होता है, जबतक किसी एक को बहुमत नहीं मिलती।
राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यताएँ :
भारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वो एक राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए। परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है:
• वर्तमान राष्ट्रपति (अधिकतम दो कार्यकाल)
• वर्तमान उपराष्ट्रपति
• किसी भी राज्य के राज्यपाल
• संघ या किसी राज्य के मंत्री।
राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी किसी भी विवाद में निणर्य लेने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग
अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। भारतीय संविधान के अंतर्गत मात्र राष्ट्रपति महाभियोजित होता है, अन्य सभी पदाधिकारी पद से हटाये जाते है। महाभियोजन एक विधायिका संबंधित कार्यवाही है जबकि पद से हटाना एक कार्यपालिका संबंधित कार्यवाही है। महाभियोजन एक कडाई से पालित किया जाने वाला औपचारिक कृत्य है जो संविधान का उल्लघंन करने पर ही होता है। यह उल्लघंन एक राजानैतिक कृत्य है जिसका निर्धारण संसद करती है। वह तभी पद से हटेगा जब उसे संसद मे प्रस्तुत किसी ऐसे प्रस्ताव से हटाया जाये जिसे प्रस्तुत करते समय सदन के १/४ सदस्यों का समर्थन मिले। प्रस्ताव पारित करने से पूर्व उसको 14 दिन पहले नोटिस दिया जायेगा। प्रस्ताव सदन की कुल संख्या के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित होना चाहिये। फिर दूसरे सदन मे जाने पर इस प्रस्ताव की जाँच एक समिति के द्वारा होगी। इस समय राष्ट्रपति अपना पक्ष स्वंय अथवा वकील के माध्यम से रख सकता है। दूसरा सदन भी उसे उसी 2/3 बहुमत से पारित करेगा। दूसरे सदन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के दिन से राष्ट्रपति पद से हट जायेगा।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ[संपादित करें]
न्यायिक शक्तियाँ
संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है।
• क्षमादान – किसी व्यक्ति को मिली संपूर्ण सजा तथा दोष सिद्धि और उत्पन्न हुई निर्योज्ञताओं को समाप्त कर देना तथा उसे उस स्थिति मे रख देना मानो उसने कोई अपराध किया ही नही था। यह लाभ पूर्णतः अथवा अंशतः मिलता है तथा सजा देने के बाद अथवा उससे पहले भी मिल सकती है।
• लघुकरण – दंड की प्रकृति कठोर से हटा कर नम्र कर देना उदाहरणार्थ सश्रम कारावास को सामान्य कारावास में बदल देना
• परिहार – दंड की अवधि घटा देना परंतु उस की प्रकृति नही बदली जायेगी
• विराम – दंड मे कमी ला देना यह विशेष आधार पर मिलती है जैसे गर्भवती महिला की सजा मे कमी लाना
• प्रविलंबन – दंड प्रदान करने मे विलम्ब करना विशेषकर मृत्यु दंड के मामलॉ मे
राष्ट्रपति की क्षमाकारी शक्तियां पूर्णतः उसकी इच्छा पर निर्भर करती हैं। उन्हें एक अधिकार के रूप मे मांगा नही जा सकता है। ये शक्तियां कार्यपालिका प्रकृति की है तथा राष्ट्रपति इनका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेगा। न्यायालय में इनको चुनौती दी जा सकती है। इनका लक्ष्य दंड देने मे हुई भूल का निराकरण करना है जो न्यायपालिका ने कर दी हो।
शेरसिंह बनाम पंजाब राज्य 1983 मे सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया की अनु 72, अनु 161 के अंतर्गत दी गई दया याचिका जितनी शीघ्रता से हो सके उतनी जल्दी निपटा दी जाये। राष्ट्रपति न्यायिक कार्यवाही तथा न्यायिक निर्णय को नही बदलेगा वह केवल न्यायिक निर्णय से राहत देगा याचिकाकर्ता को यह भी अधिकार नही होगा कि वह सुनवाई के लिये राष्ट्रपति के समक्ष उपस्थित हो
भारत के राष्ट्रपति संघ का कार्यपालक अध्यक्ष हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 52 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित है। वह सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश का प्रथम नागरिक है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
राष्ट्रपति का चुनाव
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है।
राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा वोट डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होती है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले वोट अन्य उम्मीदवारों को तबतक हस्तांतरित होता है, जबतक किसी एक को बहुमत नहीं मिलती।
राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यताएँ :
भारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वो एक राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए। परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है:
• वर्तमान राष्ट्रपति (अधिकतम दो कार्यकाल)
• वर्तमान उपराष्ट्रपति
• किसी भी राज्य के राज्यपाल
• संघ या किसी राज्य के मंत्री।
राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी किसी भी विवाद में निणर्य लेने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग
अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। भारतीय संविधान के अंतर्गत मात्र राष्ट्रपति महाभियोजित होता है, अन्य सभी पदाधिकारी पद से हटाये जाते है। महाभियोजन एक विधायिका संबंधित कार्यवाही है जबकि पद से हटाना एक कार्यपालिका संबंधित कार्यवाही है। महाभियोजन एक कडाई से पालित किया जाने वाला औपचारिक कृत्य है जो संविधान का उल्लघंन करने पर ही होता है। यह उल्लघंन एक राजानैतिक कृत्य है जिसका निर्धारण संसद करती है। वह तभी पद से हटेगा जब उसे संसद मे प्रस्तुत किसी ऐसे प्रस्ताव से हटाया जाये जिसे प्रस्तुत करते समय सदन के १/४ सदस्यों का समर्थन मिले। प्रस्ताव पारित करने से पूर्व उसको 14 दिन पहले नोटिस दिया जायेगा। प्रस्ताव सदन की कुल संख्या के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित होना चाहिये। फिर दूसरे सदन मे जाने पर इस प्रस्ताव की जाँच एक समिति के द्वारा होगी। इस समय राष्ट्रपति अपना पक्ष स्वंय अथवा वकील के माध्यम से रख सकता है। दूसरा सदन भी उसे उसी 2/3 बहुमत से पारित करेगा। दूसरे सदन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के दिन से राष्ट्रपति पद से हट जायेगा।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ[संपादित करें]
न्यायिक शक्तियाँ
संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है।
• क्षमादान – किसी व्यक्ति को मिली संपूर्ण सजा तथा दोष सिद्धि और उत्पन्न हुई निर्योज्ञताओं को समाप्त कर देना तथा उसे उस स्थिति मे रख देना मानो उसने कोई अपराध किया ही नही था। यह लाभ पूर्णतः अथवा अंशतः मिलता है तथा सजा देने के बाद अथवा उससे पहले भी मिल सकती है।
• लघुकरण – दंड की प्रकृति कठोर से हटा कर नम्र कर देना उदाहरणार्थ सश्रम कारावास को सामान्य कारावास में बदल देना
• परिहार – दंड की अवधि घटा देना परंतु उस की प्रकृति नही बदली जायेगी
• विराम – दंड मे कमी ला देना यह विशेष आधार पर मिलती है जैसे गर्भवती महिला की सजा मे कमी लाना
• प्रविलंबन – दंड प्रदान करने मे विलम्ब करना विशेषकर मृत्यु दंड के मामलॉ मे
राष्ट्रपति की क्षमाकारी शक्तियां पूर्णतः उसकी इच्छा पर निर्भर करती हैं। उन्हें एक अधिकार के रूप मे मांगा नही जा सकता है। ये शक्तियां कार्यपालिका प्रकृति की है तथा राष्ट्रपति इनका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेगा। न्यायालय में इनको चुनौती दी जा सकती है। इनका लक्ष्य दंड देने मे हुई भूल का निराकरण करना है जो न्यायपालिका ने कर दी हो।
शेरसिंह बनाम पंजाब राज्य 1983 मे सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया की अनु 72, अनु 161 के अंतर्गत दी गई दया याचिका जितनी शीघ्रता से हो सके उतनी जल्दी निपटा दी जाये। राष्ट्रपति न्यायिक कार्यवाही तथा न्यायिक निर्णय को नही बदलेगा वह केवल न्यायिक निर्णय से राहत देगा याचिकाकर्ता को यह भी अधिकार नही होगा कि वह सुनवाई के लिये राष्ट्रपति के समक्ष उपस्थित हो